Friday, 24 August 2012

ALWAR -ek sunder city

 MEHAL KI JHIL
SILLISERH-JHIL

ALWAR KA MEHAL-EK JHIL

SIRISKA SANCTUARY


silliserh - The JHIL


Siriska Sanctuary

mousi rani ki chhatri


Alwar city is beautiful  city to visit

My big holidays

After few years it will be difficult to be at home, bacause children will be young enough to be in some job,So I planned to take long leaves from officein the month of july 2012.I had plans of going out of station . Away from the  intense heat of Delhi.My husband was happy as he was planning some repaire work at home. So he said happily as you are at home he has called some labours .My first day of leaves started with the labours to make them understand the work. Slowly and gradually all my leaves were about to finish,but repaire work  was not finishing. All this finished just one day before my  last leave.

we could not make to go out .Still, I was quite contented with the good utilization of my leaves . We can go out any time-with this feeling I joined the office .

Three  holidays were coming with Janamastmi, so we planned for Alwar . It is 5 hours distance from Delhi. We all enjoyed there . In next post I will give you the detail of the places we visited

Tuesday, 2 August 2011

vo yaden

first day at college 16/07/1981

मुझे बसों के बारे में ज्यादा कुछ पत्ता नहीं था, इसलिये जल्दी उठ कर नहा धो कर फटाफट नाश्ता किया और घबराते हुए घर से निकली . मेरा कॉलेज थोडा दूर था . दो बसें बदलनी थी .मुझ्हे कुछ याद नहीं कोन सा suit  पहेना था .जेसे ही बस स्टैंड पर पहुंची , एक बस आई और में उस पर चढ़ गयी . कुछ समय बाद मुज्झे महसूस हुआ की मेरे चाचा जी जब मुझे कॉलेज दिखने ले गए थे तो यह रास्ता नहीं था . फिर तो मैं और घबरा गयी . किसी से पूछा सेंट्रल सेक्ट्रेट(दफ्तर) kab
तक  आयगा वो मेरी शक्ल दिखने लगे . हुआ यु की मैं गलत बस में चढ़ गयी थी . मुझे जाना था सेंट्रल सेक्ट्रेट की बस में ओर पकड़ ली इंटर स्टेट बस टर्मिनल की बस .अब क्या था हर पांच मिनट में पूछती क्या करूँ. किसी ने बताया आप enquiry
ऑफिस से बस पूछ कर ही बैठना . किसी तरह पूछते पाछते कॉलेज पहुँच गयी . वहां भी मन नहीं लग रहा था कयुकि अभी घर वापिस भी तो जाना था .

आज मैं ऑफिस में नोकरी करती हूँ , तीन बच्चो की माँ हूँ . डेल्ही मैं कहीं भी जा सकती हूँ . पूरा भरोसा है अपने पर.
बड़ी बेटी MCA  कर के ग्रेअटर नॉएडा में नोकरी कर रही है . छोटे जुड़वाँ बच्चे आज से कॉलेज जायेगें
 बेठे बेठे अपना समय याद आ गया . कितना सीधा समय था , घर से बेमतलब निकलना नहीं होता , तो रास्तों के बारे भी नहीं मालूम था. कॉलेज से घर ओर घर से कॉलेज बस.

bsc  के दुसरे साल आते आते थोड़ी समझदार भी हो गयी  थी. physiology  की lecturer  ने एक दिन बताया फिल्म तलाक तलाक तलाक जरूर दिखना. यही बात घर जा कर कह दी . मैं बता नहीं सकती मेरी मम्मी ने उस दिन कितना भला बुरा कहा . पापा ने कहा चुपचाप मुझे कह कर फिल्म देखने चली जाया करो .फिर तो मेने कई फिल्मे देखी. तीन साल में चार पांच तो देखी ही होंगी. इतनी फिल्म तो मेरे बच्चे एक साल में देख लेते हें .पहले पैसे भी तो नहीं थे .

अब काफी समय हो गया हे ऑफिस मैं काम भी हे .........



 






Friday, 6 May 2011

my big dream

मेरा सपना,
मेरा घर मेरे बच्चे और पति, और कुछ नहीं,
और कुछ हो भी क्यूँ , मेरी दुनिया है ये,
इस दुनिया में सब कुछ समाया हुआ है,
बाहर कुछ भी  दूर दूर तक कुछ नज़र नहीं आता,
और आता भी क्यूँ , मेरी रौशनी है ये
बाहर सिर्फ अंधकार ही अंधकार है,
क्या इस दुनिया के बाहर भी कुछ है?
 क्या इस प्रकाश के बाहर भी कुछ है?

कुछ पता नहीं?
मैं कहाँ जा रही हूँ ? कुछ पता नहीं
ये सपना कब पूरा होगा
कुछ पता नहीं